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the fantastic Inspiration story of a Man || मिला वरदान

 the fantastic Inspiration story of a Man || मिला वरदान

the fantastic Inspiration story of a Man || मिला वरदान


मिला वरदान

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सेवाराम एक गाँव में रहता था। घर में वह और पत्नी श्यामा, बस, दो ही जने थे। फिर भी जीवन आराम से नहीं बीत रहा था। सेवाराम के पास न जमीन थी, न कुछ और साधन। गाँव में जो छोटी-मोटा काम मिलता, उसी से जैसे-जैसे गुजर-बसर होती। श्यामा रोज मंदिर जाती, पति से कहती तो एक ही जवाब देता- तुम तो रोज मंदिर में जाती हो। अब तक क्या मिल गया तुम्हे?” श्यामा हँसकर कहती-“मैं कुछ माँने नहीं, भगवान की पूजा करने जाती हूँ। पूजा सच्ची होगी, तो कभी सफल भी हो जाऊँगी। इस पर कभी-कभी सेवाराम भी श्यामा के साथ चला जाता।

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दिन ऐसे ही बीत रहे थे। श्यामा कहती थी, शहर जाकर कोशिश करो। शायद वहाँ खुछ काम मिल जाए। गाँव में बैठे-बैठे कुछ होने वाला नहीं है, ,

 श्यामा ने जब कई बार कहा तो सेवाराम ने शहर जोने का मन बना लिया। एक सुबह निकल पड़ा। श्यामा ने हाथ जोड़कर मन में कहा, भगवान, इनकी रक्षा करना।

चलते-चलते दोपहर हो गई। शहर अभी दूर था। श्यामा ने रास्ते के लिए दो रोटियाँ बाँध दी थी। सेवाराम एक छायादार पेड़ के नीचं जा बैठा। चारों ओर सन्नाट-झाड़-झंखाड़, थोड़ी दूर पर नदी बह रही थी।

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सेवाराम ने खाने की पोटली खोली। फिर सोचा- पहले कहीं से पानी ले आऊँ। लोटा लेकर चला तो जमीन पर कुछ चमकता नजर आया। झुककर देखता रहा। सोच रहा था- जाने किसका है? आस-पास कोई है भी नहीं जो पूछ लूँ। तभी श्यामा की बात ध्यान आई। लगा जैसे कह रही हो साक्षात् लक्ष्मी है।

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Image by StockSnap from Pixabay 

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सेवाराम चौंक पड़ा। अरे हाँ! सच, ठीक ही तो है। दौड़ते कदमों से नदी तट पर पहुँचा। सिक्के को वहाँ पड़े एक पत्थर पर रख दिया। फिर सोचा, पूजा में तो फूल भी होते है। इधर-उधर देका, सामने एक झाड़ी पर नन्हे-नन्हे फूल नजर आए। फूल लाकर सिक्के पर चढ़ा दिए। फिर आँखें मूंदकर हाथ जोड़ लिए।

अगले ही पल घोड़े की टापों का स्वर सुनाई दिया। एक घुड़सवार पेड़ के नीचे आकर रूका। वह भी छाया देखर सुख गया, इस समय किसकी पूजा कर रहे हो भाई। मेरा नाम सूरज है।

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सेवाराम ने अपना परिचय दिया, फिर पूरी घटना बता दी। मैं उस समय बहुत बढ़िया कपड़े पहन रखे थे। मुझे देखकर सेवाराम को अपने दीन-हीन वेश पर लज्जा आने लगी। सेवाराम की बात सुन, सूरज ने हैरानी से देखा-सोने का चमचमाता सिक्का और उस पर रखे फूल। उसने सिक्के को हाथ में उठा लिया, तभी सेवाराम की आवाज कान में पड़ी- अच्छा भैया, मैं चलूँ, अभी काफी रास्ता पार करना है।

मैंने सिक्के को फिर से वहीं रख दिया। एक बार मन में लालच ने सिर उठाया, फिर बोला- जानते हो, यह क्या है?”

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क्या है?” सेवाराम ने पूछा।

यह सोने का सिक्का है, किमती और तुम इसे छोड़कर चले जा रहे हो।

तो और क्या करूँ! लक्ष्मी ने दर्शन दिए है। मेरी घरवाली कहती थी कि मैं पूजा नहीं करता। मैंने पूजा कर ली। अब शहर जाकर रोजगार ढूँढ़ंना।

मैं अचरज में पड़कर सेवाराम को देखता रहा। फिर बोला- अगर सोने का सिक्का कोई और ले जाए तो?”

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उसकी वह जाने। सेवाराम ने जवाब दिया और रास्ते की तरफ बढ़ा।

मैं कुछ दूर रूक कर सोचता रहा। फिर बोला- मैं शहर जा रहा हूँ, मेरे साथ चलो। अकेले यहाँ भटकोगें? सेवाराम ने एक-दो बार मना किया, पर मैंने उसे राजी कर लिया। सोने का सिक्का उसी तरह फूलों के बीच पड़ा रहा। घोड़ा हम दोनों को लेकर शहर चल दिया।

मैं अपने शहर के मशहूर व्यापारी दीनदयाल का विश्वासपात्र करिंदा था। मैंने उन्हे सब कुछ बता दिया। दीनदयाल कुछ पल सेवाराम की ओर देखते रहे। उस भोले और ईमानदार आदमी ने उनके मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा। बोले-सूरज! बस मुझे ऐसे ही आदमी की तलाश थी।

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सेवाराम को नौकरी मिल गई। वह गाँव जाकर श्यामा को भी शहर ले आया। आते समय दोनों उसी पेड़ के नीचे रूके। वहाँ कुछ मुरझाए फूल पड़े थे, पर सोने का सिक्का नहीं था। सेवाराम ने वहाँ ताजे फूल चढ़ाते हुए कहा- लक्ष्मी माँ दर्शन देने आई थी। वरदान देकर चली गई। सुनकर श्यामा हँसने लगी। दोनों में इस बात पर कोई चर्चा नहीं हुई की सिक्का कहा गया, उसे कौन ले गया होगा।

 

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 दोस्तों आप सब को ये कहानी कैसी लगी, मुझे कमेंट बाँक्स में जरूर बताये। इससे मेरे मनोबल और बढ़ा सकते है।

 

 

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