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महर्षि दधीचि का त्याग की कहानी- महर्षि दधीचि की कहानी - Hindi Historical Story Dadhichi (दधीचि)

Hindi Historical Story Dadhichi (दधीचि)

Image Source-Google|Image by-templepurohit


Story in Hindi- Home - ऐतिहासिक कहानियां - महर्षि  दधीचि  की कहानी Maharishi Dadhichi Story in hindi  महर्षि  दधीचि  कौन थे – इस दुनिया के समस्त लोग अपने लिए जीते और मरते हैं सभी अपने बारे में सोचते और अपना भला चाहते हैं लेकिन कुछ percent  ऐसे लोग भी होते हैं जो परोपकार के लिए अपने हितों का त्याग (scarified) कर देते हैं। Story in Hindi हमारे इस भारत   देश में ऐसे अनेक पुरुष और नारी पैदा हुई हैं जिन्होंने दूसरो के समस्यों को समाधान करने में अपना सब कुछ न्यैछावर कर दिया है और खुद दुख को सहे है। Story in Hindi ऐसे ही महान परोपकारी पुरुषों में एक ऐसे ही महापुरूष का नाम आदर के साथ लिया जाता है जिनका नाम है महर्षि दधीचि Maharishi Dadhichi Story in hindi


महर्षि दधीचि की कहानी (Maharishi Dadhichi Story in hindi)

Image Source-Google|Image by- Wikipedia


 महर्षि  दधीचि महाज्ञानी पुरूष थे। उनकी ज्ञान की प्रसन्ससा भारत देश के कोने कोने में प्रसिद्ध फैली हुयी है। भारत के अलग अलग समुदाय के लोग और दूर-दूर से Student उनके यहां विद्या अध्ययन के लिए आया करते थे, महर्षि दधीचि  सज्जन, दयालु, उदार और सभी से प्रेम का व्यवहार करते थे। वह किसा के साथ भेदभाव नहीं करते थे। महर्षि दधीचि  नैमिषारण्य सीतापुर उत्तर-प्रदेश के एक बड़े घने जंगलों के बीच में एक बड़ा आश्रम बनाकर रहते थे।

 Moral story in hindi-

उन्ही दिनों की बात है देवताओं और असुरों (राश्रस) के बीच बहुत भयंकर लड़ाई चल रही थी। स्वर्ग के सभी देवता धर्म राज्य बनाकर रहना चाहते थे।  असुर सभी देवतओं को मार कर अधर्म का राज्य बनाना चाहते थे। Moral story in hindi असुरों को व्यवहार लोगों के साथ अच्छा नहीं था असुर लोगों को तरह-तरह से सताया करते थे, और लोगों को मारकर खा जाते थे, नहीं तो बहुत भयानत दर्द देते थे जिससे रूह काँप जाय। Moral story in hindi वे अपना अर्धम का राज्य स्थापित करने के लिए देवताओं से लड़ रहे थे, असुरों की सेना बड़ी होने के कारण देवता लोग बहुत से राज्य को हार चुके थे, देवताओं को इस बात से बहुत चिन्ता थी अगर सभी राज्य असुर जीत लेते है तो मानव जाति का अन्त हो जायेगा, Moral story in hindi असुरों के हाथ में पुरी दुनिया की सत्ता, मतलब देवताओं का भी अन्त।


 Maharishi Dadhichi Story in hindi- कई महीनों तक देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चलता रहा, देवताओं ने असुरों को हारने के लिए बहुत बुद्धि का प्रयोग किये लेकिन असुरों को हराने में बार-बार असफल रहे। अन्त मे हताश होकर देवता गण अपने राजा इंद्र के पास पहुँचे, देवतागण बोले- महाराज! हमें युद्ध में जीत पाने का कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा है अब आप ही कुछ करों राजन्। कुछ दूसरे देवता गण बोले, क्यों न इस विषय में ब्रह्मा जी से कोई रास्त पुछे। स्वर्ग के राजा इंद्र देवताओं की बात मानकर ब्रह्मा जी के पास गए, देवराज इंद्र ने पूरी घटना के बारे में ब्रम्हाजी को बताया। Moral story in hindi ब्रह्माजी बोले-हे देवराज इंद्र! बलिदान में इतनी ताकत होती है कि उस बल के समाने असंभव कार्य को भी संभव बनाया जा सकता है। Maharishi Dadhichi Story in hindi  लेकिन सबसे बड़ी दुख की बात यह है कि इस समय आप सभी देवताओं में से कोई भी इस मार्ग पर नहीं चल रहा है। ब्रह्मा जी की बातें सुनकर देवराज इंद्र बहुत चिंतित हो गए।

 देवराज इंद्र बोले, फिर क्या होगा ब्रम्हदेव? क्या इस सृष्टि को असुरों के हाथ चली जाने दे? यदि ऐसा हुआ तो बहुत बड़ा अनर्थ हो होगा। ब्रह्मा जी ने कहा, हे देवराज इंद्र! निराश ना हो, असुरों पर जीत  पाने के उपाय है मेरे पास। यदि आप सब समर्पित हो तो निश्चत ही देवतागण, असुरों पर विजय पा सकता है। इंद्रदेव ने ब्रम्हा की बाते सुनकर खुश हो गये। और बहुत उतावले होते हुए पूछा, “ श्रीमान ब्रम्हदेव! शीघ्र ही रास्ता बताये हम हर संभव प्रयास करेंगे। ब्रह्मा जी ने बताया, “ नैमिषारण्य वन में एक तपस्वी तप कर रहे हैं Maharishi Dadhichi Story in hindi उस महान तपस्वी का नाम दधीचि  है। उन्होंने तपस्या और अन्तर्ध्यान के बल पर अपने अंदर अपर्मपार शाक्ति जुटा ली है यदि उनकी अस्थियों से बने अस्त्रों  का प्रयोग अपने शस्त्रों के साथ किया जाय तो आप देवतागण युद्ध में असुर को निश्चित ही हारा पाओगें। और सफलता पा सकता हो। इंद्र ने कहा, “किंतु ब्रम्हदवे! वह तो जीवित है उनकी अस्थियां फिर हमें कैसे मिल सकते हैं। 

ब्रम्हदवे ने कहा, “मेरे पास जो उपाया था मैंने आप सबको बता दिया। बाकी समस्याओं का समाधान आप स्वयं करिये, नहीं महाऋर्षि दधीचि  (Maharishi Dadhichi Story in hindi ) स्वयं कर सकते है। महर्षि  दधीचि  को देवताओं और असुरों के युद्ध की जानकारी भलि-भंति थी स्वयं चाहते थे यह युद्ध हमेशा के लिए समाप्त हो जाये और इस युद्ध में असुरों की हार हो और देवताओं की जीत हो। उन्हें इस युद्ध से बहुत आश्चर्य भी होता था कि लोग एक-दूसरे से क्यों लड़ते हैं। महर्षि  दधीचि  को इस बात से बड़ी चिंता थी कि असुरों के जीत जाने से इस संसार में अत्याचार बढ़ जाएगा। 

महर्षि दधीचि का त्याग (Maharishi Dadhichi Story in hindi)

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देवराज इंद्र और समस्त देवतागण झिझकते हुए महर्षि  दधीचि  के आश्रम पहुंचे। महर्षि  उस समय अन्तर्ध्यान अवस्था में थे, इंद्र उनके सामने हाथ जोड़कर एक याचक की भांति खड़े हो गए, ध्यान से बाहर आने पर, उन्होंने देवराजइंद्र को याचक की मुद्रा में खड़े पाया। महर्षि  ने फिर देवराजइंद्र को  बैठने के लिए कहा। फिर महर्षि   ने इंद्र से पूछा, कहिए देवराज यहाँ कैसे आना हुआ, इंद्र बोले– महर्षि  मुझे क्षमा करें मैंने आपके ध्यान में बाधा पहुंचाई है। Maharishi Dadhichi Story in hindi महर्षि  आपको ज्ञात होगा इस समय देवताओं और असुरों की भयानक लड़ाई चल रही है और असुर धीरे-धीरे धर्म को खत्म करते जा रहे है। तरह तरह के अत्याचार कर रहे हैं उनका सेनापति वृत्रासुर बहुत ही क्रूर और अत्याचारी सेनापति है।


 Maharishi Dadhichi Story in hindi उसी से देवताओं की हार हो रही है, महर्षि  ने कहा– मेरी भी चिंता का यही विषय है देवराजइंद्र। आप ब्रम्हा जी से उपाय क्यों नहीं पुछते । इंद्र ने कहा, मैं उनसे बात कर चुका हूं उन्होंने एक उपाय भी बताया है।Maharishi Dadhichi Story in hindi किंतु, किंतु, ….. किंतु क्या देवराजइंद्र, आप रुक क्यों गए साफ-साफ बताइए, अगर मेरे प्राणों की भी जरूरत होगी तो मैं तैयार हूँ विजय देवताओं की ही होनी चाहिए, और असुरों की हार। महर्षि  ने जब यह कहा। तो इंद्र ने कहा, “ब्रह्मा जी ने बताया है कि आपकी आस्थियों से बने अस्त्र वज्र के समान होगा। और आप के आस्थियों के अस्त्र देवतागण अपने शस्त्र के साथ युद्ध करे तो हम युद्ध जीत सकते है। वृत्रासुर जैसे राक्षस को मारने के लिए ऐसे ही वज्र अस्त्र की जरूरत है। इंद्रदेव की बात सुनकर महर्षि  को चेहरा कान्तिमय हो उठा। 

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महर्षि  ने कहा मै तो धन्य हो गया। उनका रोम-रोम परफुलित हो गया। प्रसन्नता पूर्वक महर्षि  दधीचि  बोले, देवराज इंद्र आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी मेरे लिए इससे ज्यादा गौरव की बात और क्या होगी आप निश्चय ही मेरी आस्थियों से वज्र बनवाएं और असुरों का विनाश कर चारों ओर शांति स्थापित करें।



दधीचि  ने भय एवं चिंता से मुक्त होकर अपने नेत्र बंद कर लिए उन्होंने योग बल से अपने प्राणों को शरीर से अलग कर लिया उनका शरीर निर्जीव हो गया देवराज इंद्र आदर्श उनके मृत शरीर को प्रणाम कर अपने साथ ले आए महा ऋषि की हस्तियों से वज्र बना। जिसके पैर से वृत्रासुर मारा गया पशु पराजित हुए और देवताओं की जीत हुई। महर्षि  दधीचि  कोो उनके त्याग के लिए आज भी लोग श्रद्धा से यााद करते करते हैं नैमिषारण्य में प्रति वर्ष फाल्गुन माह में उनकी स्मृति मेंं मेले का आयोजन होता है यह मेला महा ऋषि के त्याग और मानव सेवा के भाव की याद दिलाता है। Maharishi Dadhichi Story in hindi


धन्यवाद।

 


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