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Maharaja Ranjit Singh Biography in Hindi

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महाराजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh)

Maharaja Ranjit singh history- महाराजा Ranjit Singh का जन्म सुकरचक्या मिसल जागीर के मुखिया महाSingh के घर हुआ।  अभी वह 12 वर्ष के थे कि उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। 1792 से 1797 तक की जागीर की देखभाल एक प्रतिशासक परिषद् ने की। इस परिषद् में इनकी माता, सास और दीवान लखपतराय शामिल थे। 1797 में Ranjit Singh ने अपनी जागीर का समस्त कार्यभार स्वयं सँबाला लिया।  महाराजा Ranjit Singh ने 1801 ई0 में बैसाखी के दिन लाहौर में बाबा साहब Singh बेदी के हाथों माथे पर तिलक लगवाकर अपने आपको एक स्वतन्त्र भारतीय शासक के रूप में प्रतिष्ठित किया। Maharaja Ranjit singh history चालीस वर्षों के अपने शासनकाल में महाराजा RanjitSingh ने इस स्वतन्त्र राज्य की सीमाओं को और विस्तृत किया। साथ ही साथ उसमें ऐसी शक्ति भरी की किसी भी आक्रमणकारी की इस र आने की हिम्मत नहीं हुई।

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Sher e punjab maharaja ranjit singh

महाराजा के रूप में उनका राजतिलक तो हुआ किन्तु वे राज सिंहासन पर कभी नहीं बैठे। अपने दरवारियों के साछत मसनद के सहारे जमीन पर बैठना उन्हें ज्यादा पसन्द था।

इक्कीस वर्ष की उम्र में ही Ranjit Singh महाराजा की उपाधि से विभूषित हुये। कालांतर में वे शेर-ए-पंजाब (Sher e punjab) के नाम से विख्यात हुए।

महाराजा Ranjit Singh एक अनूठ शासक थे। Maharaja Ranjit singh history उन्होंने कभी भी अपने नाम से शासन नहीं किया। वे सदैव खालसा या पंथ खालसा के नाम से शासन करते रहे। एक कुशल सास् के रूप में Ranjit Singh अच्थी तरह जानते थे कि जब तक उनकी सेना सुशिक्षित नहीं होगी, वह शत्रुओं का मुकावला नहीं कर सकेगी। उस समय तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अदिकार सम्पूर्ण भारत पर हो चुका था। Maharaja Ranjit singh history भारतीय सैन्य पद्धति और अस्त्र-शस्त्र यूरोपीय सैन्य व्यवस्था के सम्मुख नाकार सिद्द हो रहे थे।

सन् 1805 में महाराजा ने भेष बदलकर लार्ड लेक के शिविर में जाकर अंग्रजी सेना की कवायद गणवे और सेन्य पद्धति को देखा और अपनी सेना को उसी पद्धति से संगठित करने का निश्चय किया। प्रारम्भ में स्वतंत्र ढंग से लड़ने वाले सिख सैनिकों को कवायद आदि का ढंग बड़ा हास्यास्पद लगा और उन्होंने उसका विरोध किया, पर Ranjit Singh अपने निश्चय पर दृढ़ रहे।

 

नि:संदेह Ranjit Singh की उपलब्धियाँ महान थी। उन्होंने पंजाब को एक आपसी लड़ने वाले संघ के रूप में प्राप्त किया तथाएक शक्तिशाली राज्य के रूप में परिवर्तित किया।  

-इतिहासकार जे0 डी0 कनिंघम

 

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Ranjit Singh के शासनकाल में किसी को मृत्युदण्ड नहीं दिया गया, यह तथ्य अपने आप में कम आश्चर्यजनक नहीं है। Maharaja Ranjit singh history उस युग में जब शक्ति के मद में चूर शासकगण बात-बात में अपने विरोधियों को मौत के घाट उतार देते थे, Ranjit Singh ने सदैव अपने विरोधियों के प्रति उदारता और दया का दृष्टिकोम रखा।

जब कभी Maharaja Ranjit Singh किसी भी राज्य या नवाब के साम्राज्य को जीत लेते थे तो Maharaja Ranjit Singh उस साम्राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेते थे और उस नवाब को जीवनयापन करने के लिए कोई न छोटा राज्य उसे निश्चित रूप से दे देता थे।

 

Maharaja Ranjit singh history एक व्यक्ति के रूप में Ranjit Singh अपनी उदारता एवं दयालुता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनकी इस भावना के कारण उन्हें लाखबख्श कहा जाता था। शारीरिक दृष्टि से Ranjit संह उन व्यक्तियों में से नहीं थे, जिन्हे सुदर्शन नायक के रूप मे याद किया जाय। उनका कद औसत दर्जे का था। रंग गहरा गेहुआँ था। बचपन में चेचक की बीमारी के कारण उनकी बाई आँख खराब हो गई थी। चेहरे पर चेचक के गहरे दाग थे परन्तु उनका व्यक्तित्व आकर्षक था।

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Image source- Google image|Image by-wikipedia


तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिका ने एक बार फकीर अजीमुद्दीन से पुछा कि महाराजा की कौन सी आँख खराब है। फकीर साहब ने उत्तर दिया- Maharaja Ranjit Singh के चेहरे पर इतना प्रकाश (तेज) है कि मैने कभी भी उनके चेहते पर सीधे देख ही नहीं पाया इसलिए मुझे मालूम ही नहीं है कि Maharaja Ranjit Singh की कौन सी आँख खराब है।


महाराजा Ranjit Singh का 27 जून 1839 लाहौर में देहावसान हो गया। उनके शासन के 40 साल निरंतर युद्धों-संघर्षों के साथ ही साथ पंजाब के आर्थिक और सामाजिक विकास के वर्ष थे। महाराजा Ranjit Singh की कार्यशैली में अनेक ऐसे गुण थे जिन्हें वर्तमान शासन व्यवस्था में भी उनके गुणों को अपनी व्यवस्था में रखा जाता है।

परिभाषिक शब्दावाली

 

सेना की कवायद-              सेना के युद्ध करने के नियम

लाखबक्श                    लाखों का दान देने वाला

सुदर्शन                      जो देखने में बहुत सुन्दर हो

जनश्रुति                     जो लोगों द्वारा सुनी जाती है

 

 


Maharaja Ranjit Singh के बारे में महत्वपूर्ण कहानियाँ

   पंजाब के लोक जीवन और लोक कथाओं में महाराजा Ranjit Singh से सम्बन्धित अनेक कथाएँ कही व सुनी जाती है। Maharaja Ranjit Singh पर अधिकांश कहानियाँ उनकी उदारता, न्यायप्रियता तथी सभी धर्मों को एक मानने के साथ-साथ उसके प्रति सम्मान को लेकर प्रचलित है। उन्होंने अपने जीवनकाल में अपनी प्रजा से भरपूर प्यार किया और प्रजा का प्यार मिला।Maharaja Ranjit Singh सभी लोगों के लिए जनश्रुतियों के केन्द्र बन गये थे। 

एक बार एक मुसलमान खुशनबीस (Muslim Khushanbis) ने अनेक वर्षों की साधना और श्रम से कुरान शरीफ (Kuran Sharif) की एक अत्यन्त सुन्दर प्रति सोने (gold) और चाँदी (silver) से बनी स्याही (Ink) की। उस प्रति को लेकर यह Panjab और sindh के अनेक नवावों के पास गया। सभी ने उसके work और art की प्रशंसा की परन्तु कोई भी उस प्रति को buy के लिए तैयार न हुआ। खुशनवीस (Khushanbis) उस प्रति का जो भी cost माँगता था. वह सभी को अपनी ability से ज्यादा लगा था। निराश होकर खुशनबीस (Khushanbis) लाहोर आया और महाराजा Ranjit Singh (Maharaja Ranjit Singh) के सेनापति से मिला। सेनापति ने उसके कार्य की बड़ी प्रशंसा की परन्तु इतना अधिक cost देने में उसने खुद को unable पाया। Ranjit Singh ने भी यह बात सुनी और उस खुसनवीस को अपने पास बुलवाया। खुशनबीस (Khushanbis)  ने कुरान शरीफ की वह प्रति महाराज को दिखाई। महाराजा Ranjit Singh ने बड़े सम्मान से उसे उठाकर अपने मस्तक से लगाया और अपने वजीर को आज्ञा दी- खुशनवीस (Khushanbis) को उतनी किमत दे दिया जाए, जितना वह माँग रहा है और इस कुरान की इस प्रति को मेरे संग्रहालय में सुरक्षित रख दिया जाए।

महाराज के इस कार्य से सभी को आश्चर्य हुआ। फकीर अजीमद्दीन (Fakir Ajeemddeen) ने पूछा- महाराज, आपने इस प्रति के लिए बहुत बड़ी किमत दी है, लेकिन यह तो आपके किसा काम की नहीं, क्योंकि आप सिख हैं और यह मुसलमानों की धर्मपुस्तक है।

Maharaj Ranjit Singh ने उत्तर दिया- फकीर साहब, ईश्वर तो एक ही है और उस ईश्वर की यह इच्छा है कि मैं सभी धर्मों को एक नजर से देखूँ।

 


महाराजा Ranjit Singh ने देश की अनेक मस्जिदों की मरम्मत करवाई और मंदियों को दान दिया। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर के कलश को 22 मन सोना देकर उसे स्वर्ण मण्डित किया और अमृतसर के हरिमंदिर पर सोना चढ़ावाकर उसे स्वर्ण मंदिर में बदल दिया।



Born: 13 November 1780, Gujranwala, Pakistan

Died: 27 June 1839, Lahore, Pakistan

Ranjit Singh wife/ Spouse: 

Maharani Jind Kaur (m. 1835),  Maharani Mehtab Kaur , Maharani  Datar Kaur 

Children: Duleep Singh, Kharak Singh, Sher Singh, Kashmira Singh, Ishar Singh, Tara Singh, Multana Singh, Pashaura Singh

Grandchildren: Nau Nihal Singh, Bamba Sutherland, MORE

Parents: Maha Singh, Raj Kaur

father: Sardar Maha Singh

mother: Raj Kaur


Successor
: Maharaja Kharak SinghDynasty: Sandhawalia

Religion: Sikhism



  • At what age Maharaja Ranjit Singh died?

           58 years (1780–1839)


  • Is Maharaja Ranjit Singh Rajput?


  • How many years Ranjit Singh ruled Punjab?

          Maharaja Ranjit Singh is a Lion of Punjab. He ruled Punjab for 40 years. He is the Founder of 

          the Sikh Kingdom.


  • Who is the Richest Jat in the world?

          Gaurav Dhillon- is a highly successful international Punjabi Indian Jat businessman and founder and former CEO of Informatica Corporation, worth over a billion dollars, 2006, on Nasdaq.




  • Who built Golden Temple?

Guru Arjun, The Golden Temple was built in 1604 by Guru Arjun.

It was destroyed several times by Afghan invaders and rebuilt in the early 19th century in marble and copper overlaid with gold foil.

  • Where is Maharaja Ranjit Singh buried?

Samadhi of Maharaja Ranjit Singh, Lahore, Pakistan








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